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बुधवार, 4 सितंबर 2013
पथ पर चलते एक जन को देखा (कविता)
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पथ पर चलते एक जन को देखा पथ पर चलते एक जन को देखा जिज्ञासु उस हिय को देखा प्रवाहहीन मुरझाये स्वर-सा संत्रासित बिन नीर निर्झर का ...
रविवार, 25 अगस्त 2013
मैं एक शिक्षक हूँ ! (कविता)
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मैं एक शिक्षक हूँ ! मैं एक शिक्षक हूँ ! मैं राष्ट्र विधाता हूँ! राजनीति एवं राजनीतिज्ञों से परे सामाजिक प्रगाढ़ता को बढा रहा हूँ...
गुरुवार, 15 अगस्त 2013
व्यथित हृदय अब रोता है! (कविता)
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व्यथित हृदय अब रोता है! लोकतंत्र दे रहा दुहाई , व्यथित हृदय अब रोता है | आतंक , भ्रष्टाचार देख , भारत सिसकी लेता है | बलिद...
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