गुरुवार, 15 अगस्त 2013

व्यथित हृदय अब रोता है! (कविता)

व्यथित हृदय अब रोता है!

लोकतंत्र  दे रहा दुहाई,
व्यथित हृदय अब रोता है|
आतंक, भ्रष्टाचार देख
भारत सिसकी लेता है
बलिदानों की वेदी पर 
नराधम स्वप्न मजे के लेता है

' श्वेतों ' से पा आजादी
' श्याम ' वही सब करते हैं
नैतिकता कूच कर गई 
भ्रष्ट नेता आज पनपे हैं 
सिसकी लेती भारत माता 
उलूक खद्दर में लिपटे हैं|

जवान बलि देते सीमा पर 
वाणी है, न उनकी  विराम पाती
पूछो, उन परिवारी जन से 
जिनका खोया कुल-थाती |
पेट काट पराया, अपना भरते
हक छीन, समता की बातें करते
स्वार्थ-निमग्न वह सोता है
व्यथित हृदय अब रोता है!

           -डॉ. वी. के. पाठक
               (स्वतंत्रता दिवस पर व्यक्त भावावेग)






कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें