- डॉ. वी. के. पाठक
दुर्लभं
त्रयमेवैतद देवानुग्रह हेतुकम |
मनुष्यत्वं
मुमुक्षत्वं महापुरुष संश्रयं ||
भारतवर्ष, जहाँ ज्ञान का सूर्य मेघाच्छन्न
आकाश को चीरकर आलोकित हो उठा, अपनी प्राचीन, आध्यात्म प्रधान, सर्वसमन्वयकारी,
उदार एवं व्यापक संस्कृति, आदर्शयुक्त सभ्यता, साहित्य-वैशिष्ट्य, कला-कौशल,
ज्ञान-विज्ञान, एवं दार्शनिक तत्व-चिंतन की दृष्टि से विश्व का अग्रज रहा है |
अप्रवाहहीन पंकिल, सरोवर में नीलकमल की भांति, ज्ञान का उदय, प्रत्युष वेला में,
बाल रवि की भांति, प्रसार-विस्तार भारतवर्ष में ही हुआ, जिसने दूर-दूर तक जन मानष
के कल्मष को प्रक्षालित कर दिया | किसी भी देश की संस्कृति उस देश के संपूर्ण जीवन
की परिचायक होती है | यथा भारतीय संस्कृति के स्वरूप को प्रस्तुत करता निम्न
श्लोक-
सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामया |
सर्वे
भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखभाग भवेत् ||
इस प्रकार समभाव रखते हुए भारतीय मनीषियों
ने जीवन के रहस्यों को खोज निकाला, जिससे वे परमार्थ के मानसरोवर में निमग्न
आनन्दानुभूति करने लगे | जीवन के झंझावातों से बचकर सत्य एवं असत्य, जड़ एवं चेतन
तथा दुःख तथा सुखादि तत्वों को समझने के लिए सृष्टि के आरम्भ से ही भारतीय मनीषी
अपनी समस्त शक्तियों को प्रयुक्त करते चले आ रहे हैं | जीवन में सरलता, अन्तःकरण
में ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की उदात्त भावना, सत्य-प्रियता,जगत का मिथ्या होने का
ज्ञान, भक्ति व आत्म समर्पण, चिर सुख तथा परम आनंद की प्राप्ति के लिए उत्सुकता,
सामान्यतः प्रत्येक भारतीय के क्रिया-कलापों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से
दृष्टिगोचर होती है |

वर्तमान में उपयुक्त तथ्यों की अवहेलना ही दृष्टिगत
होती है, विश्व के प्रत्येक भाग में मानव सांसारिक सुख की प्राप्ति के लिए नाना
प्रकार के दुष्कर्मों की वैतरिणी में निमग्न है | आज पाश्चात्य देशों में
ज्ञान-विज्ञान की अत्यधिक उन्नति होने पर स्वार्थमूलक भावना के कारण उपलब्ध ज्ञान
शांति एवं संतोष के स्थान पर संघर्ष, प्रतियोगिता एवं विनाश का कारण बन रहा है |
मानव आधुनिकता के नाम पर स्वयं को भुलाकर तामसी एवं पाशविक प्रवृत्तियों से पूर्ण
असभ्यता एवं आत्मा-अवनति के गर्त में स्वयं को निक्षेपित करता चला आ रहा है | अतः
वर्तमान में ऐसे दार्शनिक चिंतन की आवश्यकता परिलक्षित होती है, जिसके माध्यम से
मानव पाशविक प्रवृत्तियों के घर्षण के पिष्टपेषण होने से बचकर आत्मानुभूति करके
व्यावहारिक दृष्टि से निस्वार्थ कार्य करने की प्रवृत्ति को अपनाकर जीवन के
पारमार्थिक लक्ष्य को प्राप्त कर सके |
आवश्यकता है
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