व्यथित हृदय अब रोता है!
लोकतंत्र दे रहा दुहाई,
व्यथित हृदय अब रोता है|
आतंक, भ्रष्टाचार देख,
भारत सिसकी लेता है|
बलिदानों की वेदी पर
नराधम स्वप्न मजे के लेता है
' श्वेतों ' से पा आजादी
' श्याम ' वही सब करते हैं|
नैतिकता कूच कर गई
भ्रष्ट नेता आज पनपे हैं
सिसकी लेती भारत माता
उलूक खद्दर में लिपटे हैं|
जवान बलि देते सीमा पर
वाणी है, न उनकी विराम पाती
पूछो, उन परिवारी जन से
जिनका खोया कुल-थाती |
पेट काट पराया, अपना भरते
हक छीन, समता की बातें करते
स्वार्थ-निमग्न वह सोता है
व्यथित हृदय अब रोता है!
-डॉ. वी. के. पाठक
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