गुरुवार, 24 मार्च 2016

विपश्यना : आत्मनिरीक्षण द्वारा आत्मशुद्धि (भाग 2)


पिछले आलेख में आपने विस्तार से विपश्यना के बारे में पढ़ा | इस आलेख में आपको विपश्यना करने की गंभीर प्रक्रिया का विस्तार से वर्णन प्राप्त होगा | विपश्यना प्रशिक्षित आचार्य के सानिध्य में करने की सलाह दी जाती है| 

विपश्यना बौद्ध धर्म-दर्शन पर आधारित एक क्रियात्मक पक्ष है | जिस प्रकार बौद्ध धर्म प्राकृतिक एवं पदार्थवादी धर्म है, त्रिपिटक बौद्ध धर्म का सैद्धांतिक  पक्ष प्रस्तुत करते हैं, जबकि विपश्यना उसका क्रियात्मक पक्ष |


आवश्यक बातें (नियम)
विपश्यना के मार्ग का अनुसरण करने से पूर्व कुछ आवश्यक बातों या नियमों का पालन करना अनिवार्य है –
1.       आसन लगाकर बैठना है तथा इसमें हिलना भी मना है |
2.       आँखें सदैव बंद रखें|
3.       कमर एवं सर सीधे रखें | यदि समय के साथ झुक जाएँ तो पुन: सीधे कर लें |
4.       कठोरता से पंचशील का पालन करें-
अ.    ब्रहमचर्य
आ.  अस्तेय
इ.      सत्य
ई.      अहिंसा
उ.      अपरिग्रह
5.       विपश्यना करते हुए दस दिनों की प्रक्रिया में प्रारम्भिक चार दिन सांस का निरीक्षण करना ‘अनापान’ अर्थात् सांस का आना-जाना का निरीक्षण करना “समाधि” कहलाता है | शेष दिन प्रज्ञा के लिए निर्धारित हैं, इन दिनों में प्रज्ञा के लिए विपश्यना की जाती है |


प्रथम दिवस
पहले दिन मन (मस्तिष्क) को इस कार्य पर लगाना है कि नासिका के दोनों छिद्रों से श्वास (सांस) का आवागमन हो रहा है | मस्तिष्क का कार्य है- सजग एवं सचेत रहकर प्रत्येक श्वास के आवागमन की निगरानी करना अर्थात् श्वास का आना तथा पुनः बाहर जाने को सजग एवं सचेत होकर जानना ही एक मात्र उद्देश्य होना चाहिए | इसके साथ किसी शब्द, रूप, आकार, आकृति या स्वरूप का ध्यान नहीं करना है| मात्र श्वास के आने और जाने  (आवागमन) को जानना है |
द्वितीय दिवस
दूसरे दिन नासिका के द्वारों से अन्दर तक श्वास (सांस) के स्पर्श का अनुभव करना है | ठंडी है, गर्म है | श्वास के आवागमन का स्पर्श जानना है| वाएं अथवा दायें द्वार से सांस आ रही है अथवा दोनों से एक साथ आ रही है | यही मात्र ज्ञात करना ही आज के दिन का उद्देश्य है | मन/ चित्त/मस्तिष्क का कार्य सांस के स्पर्श को जानना होना चाहिए |
तृतीय दिवस
तीसरे दिन का कार्य ऊपरी होंठ के ऊपरी भाग से लेकर नासिका के त्रिकोणीय क्षेत्र में संवेदनाओं को जानना है | वे सम्वेदनाएँ हो सकती हैं – ठंड, गर्म, तनाव, दबाब, खिचाब, खुजली, धड़कन, स्पन्दन, धूजन, गुदगुदाहट, सरसराहट, झनझनाहट, स्फुरण, गीलापन, सूखापन आदि संवेदनाओं (Feelings/Sensations) को इस त्रिकोणीय        क्षेत्र पर जानना है | चित्त या मन या मस्तिष्क का एक मात्र कार्य है इस क्षेत्र पर संवेदनाओं को जानना |
चतुर्थ दिवस
चौथे दिन आसन लगाकर नासिका छिद्रों का बाह्य भाग तथा होठों से ऊपर का मूंछों वाले भाग पर संवेदनाओं का मन/ मस्तिष्क द्वारा जानना मात्र उद्देश्य है | किसी प्रकार की शारीरिक या मानसिक प्रतिक्रिया नहीं करनी है | इस भाग में थकान, ठंड, गर्म, तनाव, दबाब, खिचाब, खुजली, धड़कन, स्पन्दन, धूजन, गुदगुदाहट, सरसराहट, झनझनाहट, स्फुरण, गीलापन, सूखापन, घवराहट, पसीना आदि संवेदनाओं पर तीक्ष्ण दृष्टि (ज्ञान) रखनी है | मस्तिष्क को एकाग्र करने का यह एक सरल उपाय है | इस प्रक्रिया में संवेदनाओं को ज्ञात करना मात्र ही उद्देश्य होना चाहिए| संवेदनाओं को उत्पन्न करना, उनका अनुभव करना, उनकी कल्पना करना, उनकी उत्पत्ति की कामना करना अथवा प्रतिक्रिया देना वर्जित है |  संवेदनाओं को मात्र सहज स्वाभाविक तरीके से जानना ही उद्देश्य होना चाहिए |
पंचम दिवस
विपश्यना करते समय थकान, ठंड, गर्म, तनाव, दबाब, खिचाब, खुजली, धड़कन, स्पन्दन, धूजन, गुदगुदाहट, सरसराहट, झनझनाहट, स्फुरण, गीलापन, सूखापन, घवराहट, पसीना आदि संवेदनाओं को अधोलिखित स्थानों के क्रम में ज्ञात करें, निरीक्षण करें, जानें और अगले भाग को जानें | किसी प्रकार से संवेदनाओं को उत्पन्न करना, कल्पना करना, अनुभव करना या उनके प्रति किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया देना वर्जित है | बौद्ध धर्म के अनुसार सब कुछ अनित्य, नश्वर, परिवर्तनशील एवं अशाश्वत है | इसलिए ये सम्वेदनाएँ हमारे शरीर में नश्वरता, परिवर्तनशीलता एवं अनित्यता का वोध कराती हैं |
क्रम- 1.  नाक के नीचे छोटे भाग से 2. ब्रह्मरंध्र-तालु (अर्थात् शिशु के सिर का कोमल भाग) 3. पूरा सिर 4. चेहरा 5. कंठ 6. दांयाँ कन्धा 7. सम्पूर्ण दायाँ हाथ 8. वायां कन्धा 9. सम्पूर्ण वायां हाथ 10. गर्दन 11. पीठ 12. पीठ से नीचे का भाग 13.छाती 14. पेट 15. दाईं जांघ 16. सम्पूर्ण दायाँ पैर 17. वायीं जांघ 18. वायां पैर |
इसी क्रम में पुनः - पुनः संवेदनाओंका निरीक्षण करें | यदि ज्ञात नहीं हो रहीं हो रहीं हैं तो मन की तीक्ष्णता बढ़ाएं एवं थोड़ी प्रतीक्षा करें | पुन: आगे क्रम को पूरा करें | जिस स्थान पर सम्वेदनाएँ नहीं थीं वहां अगली बार देखें | इसका अर्थ यह भी है कि जो पिछली बार था वह अब नहीं है अर्थात् परिवर्तित हो चुका है | इसी तरह अभ्यास लगातार सजग होकर करते रहें |
कर्ता, भोक्ता या दृष्टा भाव
इन संवेदनाओं को कर्ता और भोक्ता के स्थान पर दृष्टा (साक्षी) भाव से निरीक्षित करना है | कर्ता या भोक्ता भाव मन में राग या द्वेष उत्पन्न करता है |
मनसा, वचसा एवं कर्मणा भाव
हमारे मन द्वारा निर्धारित संवेदनाओं के अनुरूप ही वाचिक कर्म एवं शारीरिक कर्म  उत्पन्न होते हैं | चित्तवृत्तियों (मन) द्वारा ही वाचिक एवं कार्मिक क्रियाएं सम्पन्न होती हैं  | बीज के अनुरूप फल एवं कारण के अनुसार परिणाम उत्पन्न होता है | यही क्रम अनन्त चलता रहता है | डाकू द्वारा चाकू से किसी की हत्या या डॉक्टर द्वारा चाकू से ऑपरेशन थिएटर (ओ टी ) में मरीज की मृत्यु | दोनों में अंतर है – चित्तवृत्तियों का | इसी प्रकार किसी को गाली देना एवं वही गाली अपने बच्चे को देने में अंतर है |
इन सभी से समत्व का भाव होना चाहिए | यही चित्त्वृत्त्यों का निर्लिप्त भाव कहलाता है | चित्तवृत्तियों (मन) का प्रक्षेपीकरण या प्रकटीकरण वाचिक एवं कायिक कर्म भाव होता है | इसलिए संवेदनाओं को अशाश्वत, नश्वर, परिवर्तनशील, अनित्य एवं क्षणभंगुर मानकर निरीक्षण करना चाहिए | समत्व भाव तथा अनित्य (नश्वर) मानकर, जो यथार्थत: अनुभूति हो रही है उसका निरीक्षण करना चाहिए |
षष्ठ दिवस
अनुलोम-प्रतिलोम
पंचम दिवस की निरीक्षण प्रक्रिया को अब पैर से प्रारम्भ कर सिर तक तथा सिर से पुन: प्रारम्भ कर पैर तक जाएँ | उसी समत्व भाव से निरीक्षण करते हुए यह प्रक्रिया बार-बार करते रहें |
सप्तम दिवस
पंचम एवं षष्ठ दिवस की गई उक्त निरीक्षण प्रक्रिया इस बार सिर से प्रारंभ कर चेहरे, दोनों कन्धों, दोनों हाथों, दोनों जांघों, दोनों पैरों तक तथा पुन: वापिस दोनों पैरों की अँगुलियों से प्रारम्भ कर सिर तक जाएँ | तटस्थ एवं समत्व भाव से अनित्य, क्षणभंगुर, अशाश्वत मानकर संवेदनाओं का निरीक्षण करें | अच्छी संवेदनाओं के प्रति राग उत्पन्न न होने पाए, कष्टप्रद संवेदनाओं के प्रति द्वेष उत्पन्न न होने पाए | तभी समत्व स्थापित हो पायेगा | तभी आप वीतरागी एवं वीतदोषी होंगे तथा निर्वाण की अवस्था तक पहुचेंगे |
अष्टम दिवस
निरन्तरता का अभ्यास
जागृत अवस्था में चलते-फिरते, खाते-पीते संवेदनाओं (स्थूल एवं सूक्ष्म) का निरीक्षण समत्व भाव से करते रहना है, जिससे अनित्य वोध जागृत रहेगा | सूक्ष्म से सूक्ष्मतम संवेदनाओं का निरीक्षण करते हुए ज्ञात होगा कि सब कुछ नश्वर एवं परमाणुमय है तथा तरंगें ही तरंगें हैं | इन सभी का उत्पाद (उत्पत्ति) होता है एवं व्यय (नष्ट) होता है | जो संवेदना या तरंग या परमाणु अभी है | वह कुछ समय बाद नहीं होगा अर्थात् उसका उत्पन्न होना एवं नष्ट होना लगातार चलता रहेगा | प्रत्येक अवस्था में समता बनी रहे इसका प्रयास करना चाहिए | संवेदनाओं का निरीक्षण करना इस साधना का मूल्यांकन नहीं है | मूल्यांकन की कसौटी है –समता (समत्व)|

नवम दिवस
इस दिन सम्पूर्ण मानव शरीर या स्कंध या पिंड में संवेदनाओं का निरीक्षण करना है | इस दिन संवेदनाओं के निरीक्षण का तीन प्रकार हैं – 1. स्थूल संवेदनाएं – (थकान, ठंड, गर्म, तनाव, दबाब, खिचाब, खुजली, धड़कन, स्पन्दन, धूजन, गुदगुदाहट, सरसराहट, झनझनाहट, स्फुरण, गीलापन, सूखापन, घवराहट, पसीना आदि )| 2. सूक्ष्म संवेदनाएं (धारा-प्रवाह रूप से) 3. संयुक्त रूप से  सूक्ष्म धारा-प्रवाह संवेदनाओं के साथ-साथ स्थूल संवेदनाएं |
उक्त तीनों प्रकारों से शरीर के बाह्य भाग का निरीक्षण करें, साथ ही आंतरिक अंगों का भी निरीक्षण करें – सिर से अंदर-अन्दर पैर तक, फिर पुन: पैर से शरीर के स्कंध को अन्दर-अन्दर पार करते हुए सिर तक | वाएं से दायें, दायें से वाएं और आगे से पीछे-पीछे से आगे | इसी प्रकार अंत में मेरुदंड का भी निरीक्षण करें | जो संवेदनाएं प्रत्यक्षत: अनुभव हो रहीं हैं, वही प्रत्यक्ष ज्ञान है, अनुभूतिजन्य ज्ञान है, जो कि अनित्य है, अशाश्वत है अत: इसके प्रति राग-द्वेष कैसा ? इस तरह समता स्थापित करते रहें और प्रज्ञा पुष्ट करते रहें |
दशम दिवस
अंतिम दिन विपश्यना के सम्पूर्ण प्रभाव को चिर स्थायी करने के लिए,  सम्पूर्ण दीक्षा काल की सफलता की कामना के लिए मंगल मैत्री की कामना की जाती है | इस प्रकार विपश्यना की साधना सम्पूर्ण होती है |
      यह आजीवन करते रहने की प्रक्रिया है | इसे संसारी मनुष्य गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए कर सकता है |
ध्यातव्य तथ्य
1.       प्रगल्भ व्यक्ति विपश्यना के लिए न जाएँ- विपश्यना प्रशिक्षण में मन, वचन एवं कर्म से संप्रेषण करना सख्त मना है | अर्थात् विपश्यना केंद्र में सम्पूर्ण रूप से मौन रहना होता है | नेत्रों से या इशारों से बातें करना मना होता है |
2.       एक समय खाना खाने की परम्परा है, अत: इस तथ्य का भी ध्यान रखें की खाना दोपहर में एक बार ही मिलाता है |
3.       दिन भर में कुल बारह घंटे समाधि की अवस्था में प्राणायाम करना, जिसमें से तीन घंटे अधिष्ठान (प्रात: 8:00-9:00 बजे, 2:30-3:30 बजे, सायं 6:00-7:00 बजे) के लिए निर्धारित होते हैं, जिसमें किसी भी प्रकार की हलचल माना होती है| अधिष्ठान अर्थात् अधिकारपूर्वक स्थान ग्रहण करना, जिस समाधि में हलचल मना है, जिस आसन को ग्रहण किया है , नेत्र बंद कर उसी आसन में संवेदनाओं का तटस्थ भाव से निरीक्षण करना होता है |

द्विभाषी शिविर ऐसे शिविर है जो दो भाषाओंमें सिखायें जाते है. सभी साधक दैनंदिन साधना की सुचनाएँ दो भाषाओंमें सुनेंगे. श्यामके प्रवचन अलग से सुनाये जायेंगे.
पुराने साधक याने वो, जिन्होनें स. ना. गोयन्काजी अथवा उनके सहायक आचार्योंके साथ किमान एक १०-दिवसीय शिविर पूर्ण किया है.
पूराने साधकों को नीचे दिये गए शिविरों में धम्मसेवा का अवसर प्राप्त हो सकता है.
सभी शिविर पूर्णतया दान के आधारपर चलते है. सभी खर्च उनके दानसे पूर्ण होते है, जो शिविर पूर्ण करके विपश्यना का लाभ अनुभव करनेपर दूसरोंको यही मौका देना चाहते है. आचार्य अथवा सहायक आचार्य कोई मुहफ्जा नहीं पाते; वह तथा शिविर में सेवा देनेवाले सेवक अपना समय स्वेच्छापूर्ण रूपसे देते है. इस प्रकार विपश्यना व्यावसायिकरण से मुक्त रूप में दी जाती है.
ध्यान शिविर दोनों केंद्र और गैर - केंद्र स्थानों पर आयोजित की जाती हैं. ध्यान केंद्र शिविरों को साल भर नियमित रूप से आयोजित करने में समर्पित हैं. इस परंपरा में ध्यान केंद्र स्थापित करने से पहले सभी शिविर कैंप, धार्मिक स्थान, चर्च और इस तरह के रूप में अस्थायी जगहोमें आयोजित किये गये. आज, जहां विपश्यना क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय साधकों द्वारा केंद्र अभी तक स्थापित नहीं किया गया है, ऐसे क्षेत्रों में १० दिन ध्यान शिविर गैर-केंद्र शिविर स्थलों पर आयोजित किया जाता हैं.

शिविर का प्रकार
1.       पुराने साधकों के संक्षिप्त शिविर (- ३ दिवसीय) उन सभी साधकोंके लिए है जिन्होंने स. ना. गोयन्काजी अथवा उनके सहायक आचार्योंके साथ १०-दिवसीय शिविर पूर्ण किया है. शिविर में उपस्थित रहने के लिए सभी पुराने साधकों के आवेदन का स्वागत है. इनमें यह पुराने साधक भी शामिल है, जिनको पिछला शिविर करके कुछ समय हुआ है.
2.       १० दिवसीय शिविर विपश्यना साधना के परिचयात्मक शिविर है, जिनमें यह तकनीक हर दिन क्रमशः सिखायी जाती है. यह शिविर श्यामके २ - ४ बजे पंजीकरण और निर्देश के बाद शुरू होती है. उसके बाद १० पूर्ण दिन साधना होती है. शिविर ११वे दिन सुबह ७.३० बजे समाप्त होते है.
3.       अधिकारियों के लिए १० दिवसीय शिविर खास तौर से कार्यकारी और प्रशासकीय अधिकारीयों के लिए विपश्यना साधना के परिचयात्मक शिविर है, जिनमें यह साधना हर दिन क्रमशः सिखायी जाती है. अधिक जानकारी के लिए कृपया अधिकारियोंके शिविर की वेबसाइट  देखें. यह शिविर श्याम के २ - ४ बजे पंजीकरण और निर्देश के बाद शुरू होती है. उसके बाद १० पूर्ण दिन साधना होती है. शिविर ११वे दिन सुबह ७.३० बजे समाप्त होते है.
4.       10-दिवसीय शिविर पुराने साधकोंके लिये १०-दिवसीय शिविर जैसेही समयसारिणी और आचारसंहिता है. कमसे कम तीन १० दिवसीय शिविर और एक सतिपठ्ठान सुत्त शिविर किया है और पिछले १० दिवसिय शिविरके बाद विपश्यनाके सिवा और कोइभी अन्य साधना न करता हो और एक सालभर विपश्यनेका अभ्यास करते हुए दैनंदीन अभ्यासमे पाचशीलोंका दिनभर पालन करता हो, ऐसेही गंभीर पुराने साधकोंके लिये यह शिविर है.
5.       विशेष १० दिवसीय शिविर केवल गंभीर पुराने और इस साधनामें प्रतिबद्ध साधकों के लिए है, जिन्होनें कम से कम ५ दस दिवसीय शिविर और एक सतिपट्ठान सुत्त शिविर किया है; कम से कम एक १० दिवसीय धम्मसेवा दी है और किमान २ सालसे नियमित रूपसे साधना का अभ्यास कर रहे हैं.
6.       २० दिवसीय शिविर केवल गंभीर पुराने और इस साधना में प्रतिबद्ध साधकों के लिए है, जिन्होनें कम से कम ५ दस दिवसीय शिविर और एक सतिपट्ठान सुत्त शिविर किया है; कम से कम एक १० दिवसीय धम्मसेवा दी है और किमान २ सालसे नियमित रूपसे साधना का अभ्यास कर रहें हैं.
7.       ३० दिवसीय शिविर केवल गंभीर पुराने और इस साधना में प्रतिबद्ध साधकों के लिए है, जिन्होनें कम से कम ६ दस दिवसीय शिविर (२० दिवसीय शिविर के बाद एक), एक २० दिवसीय शिविर और एक सतिपट्ठान सुत्त शिविर किया है; और किमान २ साल से नियमित रूपसे साधना का अभ्यास कर रहे हैं.
8.       ४५ दिवसीय शिविर केवल धम्मसेवा में जुड़े साधकों के लिए और सहायक आचार्यों के लिए है, जिन्होंने कम से कम ७ दस दिवसीय शिविर (३० दिव्सीय शिविर के बाद एक), दो ३० दिवसीय शिविर और एक सतिपट्ठान सुत्त शिविर किया है; और किमान ३ सालसे नियमित रूप से साधना का अभ्यास कर रहे हैं.
9.       ६० दिवसीय शिविर केवल धम्मसेवा में जुड़ें साधकों के लिए और सहायक आचार्यों के लिए है, जिन्होंने कम से कम दो ४५ दिवसीय शिविर किये है; और किमान ५ साल से दैनिक साधना का अभ्यास (दिनमें २ घंटे) कर रहे हैं; जीवहत्या से विरत है; अब्रम्हचर्य से विरत है; नशे के सेवन से विरत है; और बाकी शीलोंका पालन अपनी क्षमतानुसार किमान १ सालसे कर रहे हैं तथा पिछले दीर्घ शिविर के बाद ६ महि्ने का अन्तराल हुआ है; दीर्घ शिविर और अन्य किसी शिविरमें १० दिनका अन्तराल हुआ है. यह शिविर केवल सहायक आचार्य और धम्मसेवामें गहराई से संलिप्त साधकों के लिए ही है.
10.   बच्चोंके शिविर - १२ सालके सभी बच्चोंके लिये खुले है, जो साधना सिखना चाहतें हैं. उनके माता-पिता / पालक साधक होना जरूरी नहीं हैं.
11.   पुराने साधकों के कार्यक्रम सेवा कालावधि जैसे होते है, जिनमें केंद्रकी देखभाल, निर्माण, घरेलु और बागबानी जैसे विविध किंतु अधिक पूर्ण और संरचित कार्यक्रम रहतें है. इनमें सहायक आचार्यों को मिलने की संधी प्राप्त होती है, और समिति तथा विश्वस्त बैठकों को उपस्थित रहनेकी संभावना होती है. भाग लेने के लिए सभी पुराने साधकों का  स्वागत है. दैनिक कार्यक्रम में ३ सामुहिक साधना और सुबह - दोपहर को कामकाज का कालावधि संमिलित रहेगा. श्यामको विशेष प्रवचन लगाए जाएगें जो स. ना. गोयंकाजी ने पुराने साधकों के लिए दिये हैं.
12.   खुले दिन साधना शिविरोंके बीच मे रहते है. इस समय विपश्यना साधना और केन्द्रकी जानकारीकेलिये आप सबका स्वागत है.
13.   सतिपठ्ठान सुत्त शिविर के लिये १० दिवसिय शिविर जैसी ही समय-सारिणी और अनुशासन-संहिता होती है. इनमें यह अंतर है की टैंप किये हुए श्यामके प्रवचनो में सतिपठ्ठान सुत्तका गौर से अभ्यास किया जाता है. यह प्रमुख पाठ है जिसमें विपश्यनाकी तकनीक सुव्यवस्थित रूप से समझायी गयी है. यह शिविर उन पुराने साधकों के लिए खुले हैं जिन्होने कम से कम तीन १०-दिवसीय शिविर पूरें किये है, पिछले १०-दिवसीय शिविर के बाद अन्य कोई साधना पद्धती का अभ्यास नही किया है, विपश्यना की तकनीक का कम से कम १ साल अभ्यास किया है और जो दैनंदिन जीवन में पंचशील का पालन करने की कोशिश कर रहे हैं.
14.   पुराने साधकोंके स्वयं-शिविर के लिये १० दिवसीय शिविर जैसी ही समय-सारिणी और अनुशासन-संहिता होती है. इन में यह अंतर है की कोई आचार्य उपस्थित नहीं रहतें. यह शिविर पुराने गंभीर साधकों के लिए खुले है जिन्होनें कम से कम ३ दस-दिवसीय शिविर किये है, पिछले शिविर के बाद अन्य कोई साधनापद्धती का अभ्यास नहीं कर रहे हैं, विपश्यना की तकनीकका किमान १ सालसे अभ्यास कर रहे हैं और जो दैनंदिन जीवन में पंचशील का पालन करने की कोशिश कर रहें हैं.
15.   सेवा कालावधि केंद्र की देखभाल, निर्माण, घरेलु और बागबानी जैसे विविध कार्यक्रमों के लिए रहतें हैं. सभी पुराने साधकों का  भाग लेने के लिए स्वागत है. दैनिक कार्यक्रम में ३ सामुहिक साधना और सुबह - दोपहर का कामकाज का कालावधि संमिलित रहेगा. चुनिंदा श्यामों को टैंप किये हुए विशेष प्रवचन लगाये जायेंगें जो स. ना. गोयंकाजी ने पुराने साधकों के लिए दिये हैं.
16.   किशोरों के आनापान शिविर १३ सालसे १८ साल के उम्रके युवकों के लिए खुले है. उनके माता-पिता / पालक विपश्यना साधक होना जरूरी नहीं हैं.



स्थान
शिविरों का संचालन कई विपश्यना केंद्रों पर तथा अस्थायी जगहों पर किया जाता है। हर जगह का अपना शिविर कार्यक्रम होता है। बहुंताश जगहों के शिविरों के लिए आवेदन शिविर कार्यक्रम में उचित दिनांक पर क्लिक करके किया जा सकता है। यहा पर बहुत से केन्द्र है भारत एवं एशिया/पेसिफिक  में अन्य जगहों में कई एकउत्तर अमेरिका में दसलेटिन अमेरिका  में तीनयूरोप में आठ; ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूज़ीलेंड  में सातमध्यपूर्व  में एक एवं अफ्रिका में एक केंद्र है। दस दिवसीय शिविर कई बार केंद्रों के बाहर कई जगहों पर स्थानिक साधकों द्वारा आयोजित किये जाते हैं।
१० दिवसीय शिविर विपश्यना साधना के परिचयात्मक शिविर है, जिनमें यह तकनीक हर दिन क्रमशः सिखायी जाती है. यह शिविर श्यामके २ - ४ बजे पंजीकरण और निर्देश के बाद शुरू होती है. उसके बाद १० पूर्ण दिन साधना होती है. शिविर ११वे दिन सुबह ७.३० बजे समाप्त होते है.


·         विश्व 167 केंद्र, 124 अस्थायी केंद्र

·         आफ्रिका 1 केंद्र, 20 अस्थायी केंद्र

·         अमेरिकास 20 केंद्र, 41 अस्थायी केंद्र

·         एशिया 124 केंद्र, 23 अस्थायी केंद्र

·         यूरोप 14 केंद्र, 37 अस्थायी केंद्र
·         ओसिआनिआ 8 केंद्र, 3 अस्थायी केंद्र
India
Andhra Pradesh
Hyderabad:
Mr. Prabhat Bansal
Tel: 4554945, Mobile: 98480-34019.
Chandigarh
Chandigarh:
Sh K.L.Sharma
Tel: 9815041666, 01725036204
Mrs. Sudha Tyagi
Tel: 01722746112
Col N.S.Issar
Tel: 01722563 
Chhattisgarh
Bhilai-Durg:
S.C.Kathane,
Mobile: 9406117337.
C.L.Joshi,
E-mail: cljoshi2004@yahoo.com
Bilaspur:
B. D. Khatri, Vidya Upanagar, Bilaspur.
Tel: 230671.
S. Meshram,
Tel: 254830 
Raipur:
Sadaram Gupta,
Mobile: 9425205310.
Goa
Goa Vipassana Samiti, C/O Shankar Doraiswamy
Tel: 0832-2464516,
E-mail: dshankar67@gmail.com
Gujarat
Anumala:
Y. S. Bhagat, C1/10, Anumala Township,
Tel: 02626-234799
Bhavnagar:
Anil Shah, 10, Varsh Society, Subhashanagar, Bhavnagar.
Tel: 0278-2209545.
Dharmaj
Shree Hemantbhai Patel
Tel: (02697) 245460 (Office)
Tel: 09426 500765 (Mobile)
E-mail: jalaram_trust@rediffmail.com
Gandevi:
Mr. R Agarwal, 8 Dirgayu Apts, Mahadevnagar, Bilimora-396321.
Tel: 02634-253166, 253115
Malpur:
Leelaben Soni, 23 Kalyan Society, 2, Modasa 383315, Sabarkantha, Gujarat.
Tel: 02774-241135.
Mandvi-Kutch:
Ishwarlal Shah,
Tel: 02834-223076, 223406, Fax: 224267.
E-mail: info@sindhu.dhamma.org
Palanpur:
Satish Rashtrapal,
Tel: 02742-258698. 
Belaben Shapishi,
Tel: 254325
Surat:
Mr. Rajesh Kothari
Tel: 0261-2474627, 2476435
Surendranagar:
Karunaben Mahasati, 10, Bankers Society, Surendranagar 363002.
Tel: 02752-242030
Thara:
Mr. Jitendra Kotak, 6, Sardar Krishiganj, Thara-385555, (Banaskanta)
Tel: 02747-2127
Jammu & Kashmir
Leh-Ladakh:
Ven. Bhikkhu Sanghasena, Mahabodhi International Meditation Centre, Post Box 22, Devachan, Leh-Ladakh-194101
Tel: 01982-244155
Fax: 252875.
Jharkhand
Ranchi:
New Co-operative Building, Shyamlee Colony, Doranda, Ranchi-834004.
Tel: 0651-225309, 2253519, Fax: 225328
Karnataka
Bangalore:
Vipassana Meditation and Research Centre, Dhamma Paphulla
Tel: 0091 (080) 2371 2377
E-mail: info@paphulla.dhamma.org
Kerala
Kochi:
Kerala Vipassana Samiti, Geethanjali, Maruti Swamy Road, Kaloor, Kochi-17.
Tel: 0484-2539891.
E-mail: b_raveendran@hotmail.com
Thomas Abraham
Tel: 0482-2212047, 2211047, 
B. Raveendran, Ernakulam,
Tel: 0484-2539891
Madhya Pradesh
Kawarda:
Mr. J P Bagde
Tel: 07741-32230
Manipur
Manipur:
Khayao/Minao, IRCOD, Siddharth Village, Nungaroak, Pallel, Dist. Chandle,
Tel: 03858-261618. 
Maharashtra
Akola:
Mr. Shrikant S. Patil
Tel: 07265-252003, 253456. 
Akot:
Mr. Mohanlal Agarwal,
Tel: 07258-223225
Bhusaval:
Mrs. P. M. Kotecha,
Tel: 224431
Buldhana:
Shyam Tayde,
Tel: 07262-247127
Chandrapur:
Milind Gharde,
Tel: 07172-262477, 225593. 
Khamgaon:
J. S. Tomar, Bobade Colony,
Tel: 07263-250978
Kotamba:
Mr. Vijay Dange
Tel: 241346, 239245.
Nandurbar:
Dr. Prasad Sonar
Tel: 02564-222731
Nanded:
Dr. Sangram Jondhale.
Tel: 235232, 243208.
Pravaranagar:
Mr. D. E. Dhumal
Tel: 02422-252279
Shegoan:
Tarachand Gwalani
Tel: 253456
Washim:
Rajabhau Raut
Tel: 07252-234933
Yavatmal:
E. D. Gadling, Vaishali Soc. Yavatmal,
Tel: 07232-50808.
Orissa
Berhampur:
Santosh Sahu,
Tel: (0680)250849, 250829
Gopalpur:
Surasinha Patnaik, Light House Square, Gopalpur-761002,
Tel: 0680-2242136,
Santosh Sahu.
Tel: 0680-2280849
Jatni:
G. John/S. K. Rama.
Tel: 0674-2490516, Fax: 2490160.
E-mail: thread@sancharnet.in
Kakariguma:
Ms Manorama, WIDE, Siddharth Village, Kakariguma, Korput Dist.
Tel: 06855-266616. 
Khariyar Road:
K. C. Sahu,
Tel: 06678-222047 (R), 222872 (Clinic)
Suresh Kumar Achary,
Tel: 06678-222187 (R), 222563 (O).
Khurda:
Debjeet/Jyoti,
Tel: 0674-2330275
Sambalpur:
Subrata/Pradyut, WIDE, Siddharth Village, Sunatikara, Sambalpur.
Tel: 0663-2540404. 
Rajasthan
Bikaner:
Mulchand Bathiya, Golchha Mohalla, Bikaner
Tel: 0151-2886731
Tamil Nadu
Coimbatore:
Bharat Shah
Tel: 0422-2552250, Mobile: 09894-047244. 
Mahesh Bansal
Tel: 0422-2554211.
Hosur:
AIRCOD, Siddharth Village, Madivalam, Post. Nallur, Hosur.
Tel: 04344-244874, 243524, 246634,
E-mail: aircod@bgl.vsnl.net.in
Madurai:
Lalji Vora
Tel: 2624365, 2629465.
Pondicherry:
Mrs. Vijayalaxmi, 106, Bharathidasan St, Muthialpet, Pondicherry 605003.
Tel: 0413-2238391,
Uttar Pradesh
Fatehpur:
Rajkumar Chauvan, Khadipur, Lal Bahadur Shastri Marg, Fatehpur.
Tel: 05180-224773, 223185.
Gorakhpur:
Bhumaidhar, Sahbajgunj, Sahjnawa, Gorakhpur,
Tel: 0551-2700342,
Bhanuprakash Maurya,
Tel: 2700282 
Jhansi:
Naresh Agrawal
Tel: 2448555. Fax: 0517-2448666
Kanpur:
Ashok Kumar Sahu, Kanpur
Tel: 2410325, 2410886. 
Lakhimpur Khiri:
Ven. Sumangal or Silaratna, Mahamaya Buddha Vihar, Siddharth Nagar, Lakhimpur Khiri-262701
Lucknow:
Mr. Pankaj Jain
Tel: 0522-2781896, 3106341
Mainpuri:
Mr. Harpal Yadav
Tel: 05672-240003 (R), 246289 (O).
Nainital:
L. D. Dadhichi,
Tel: 05942-236286,
M. L. Shah,
Tel: 05942-235280, 235771
Sarnath:
Prem Shankar Shrivastav,
Tel: 099350-38801.
Sravasti:
Gaurav Singh,
Tel: 0522-2222485.
Uttaranchal
Nainital:
L. D. Dadhichi, Parsi Sah Studio, Near Veternary Hospital, Malli Tal, Nainital-263001.
Tel: 05942-236286,
M. L. Shah,
Tel: 05942-235280, 235771
West Bengal
Siliguri:
Darjeeling 1. D. B. Pradhan
Tel: 244996,
E-mail: dbp_darvipassana@rediffmail.com
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Tel: 252418 
Kurseong (West Bengal):
D. B. Pradhan,
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