रविवार, 25 अगस्त 2013

मैं एक शिक्षक हूँ ! (कविता)

मैं एक शिक्षक हूँ !

मैं एक शिक्षक हूँ !
मैं राष्ट्र विधाता हूँ!
राजनीति एवं राजनीतिज्ञों से परे
सामाजिक प्रगाढ़ता को बढा रहा हूँ
भावी कर्णधारों के निर्माण कारखाने में
यंत्रवत अग्रसर हो रहा हूँ
संप्रति.............
अपने नीड़ में
स्नेह-प्राप्ति को आतुर |
अज्ञानांधकार का तिरस्कार करने वाला
मैं स्वयं तिमिर मैं विलीन हो रहा हूँ !
मैं एक शिक्षक हूँ !
संप्रति एकलव्यों का सृजन करना होगा,
वही मेरा एकांतिक कृत–संकल्प लक्ष्य होगा|
किंकर्तव्यविमूढ़ जनों के लिये
मुझे सन्मार्ग खोजना होगा
छिद्रान्वेषियों  का मान-मर्दन तत्क्षण करना होगा
तब कहीं
मुझे नवोदित धनुर्धारी अर्जुन मिलेंगे
सहस्त्रबाहु-सम अज्ञानांधकार का
पटाक्षेप करना होगा|
तब मुझे .....
सद्य-प्रसूत रस-प्लावित फल प्राप्त होगा
सृजनात्मकता का मूल्य यही होगा|
क्योंकि मैं एक शिक्षक हूँ !

-    डॉ. वी. के. पाठक
(साभार: प्रेरणा,2009 से पुनर्प्रकाशित)


गुरुवार, 15 अगस्त 2013

व्यथित हृदय अब रोता है! (कविता)

व्यथित हृदय अब रोता है!

लोकतंत्र  दे रहा दुहाई,
व्यथित हृदय अब रोता है|
आतंक, भ्रष्टाचार देख
भारत सिसकी लेता है
बलिदानों की वेदी पर 
नराधम स्वप्न मजे के लेता है

' श्वेतों ' से पा आजादी
' श्याम ' वही सब करते हैं
नैतिकता कूच कर गई 
भ्रष्ट नेता आज पनपे हैं 
सिसकी लेती भारत माता 
उलूक खद्दर में लिपटे हैं|

जवान बलि देते सीमा पर 
वाणी है, न उनकी  विराम पाती
पूछो, उन परिवारी जन से 
जिनका खोया कुल-थाती |
पेट काट पराया, अपना भरते
हक छीन, समता की बातें करते
स्वार्थ-निमग्न वह सोता है
व्यथित हृदय अब रोता है!

           -डॉ. वी. के. पाठक
               (स्वतंत्रता दिवस पर व्यक्त भावावेग)