बुधवार, 4 सितंबर 2013

पथ पर चलते एक जन को देखा (कविता)

पथ पर चलते एक जन को देखा

पथ पर चलते एक जन को देखा
जिज्ञासु उस हिय को देखा
प्रवाहहीन मुरझाये स्वर-सा
संत्रासित बिन नीर निर्झर का |
पथ पर चलते एक जन को देखा.....
श्लाघनीय उन पद सुमनों को
दृश्य देख हुआ मन हर्षित-सा
पथ पर चलते एक जन को देखा.....
सहसा
सुरसावत् देख तम का आगार
प्रतिपल श्वासोच्छवास बढ़े अवसाद
संपीडित कर नव निर्मित स्वर
शारदे सुत का नव प्रसाद
पथ पर चलते एक जन को देखा.....
संवाहक वह ज्ञान-निर्झर का |
लक्ष्य-भेद नव-निर्झर आया
विलुप्त हुआ तम सर्व जन उर का
सतत ईप्सित फल कामना यही है
गुरूर्ब्रह्मा वाक्य हो जग का |
नमन करूँ, शत-शत प्रणाम ||
पथ पर चलते एक जन को देखा.....


- डॉ. वी. के. पाठक 
(शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर)





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