गुरुवार, 29 अगस्त 2013

सच्ची भारतीयता के संस्कार दें नौनिहालों को (आलेख)

सच्ची भारतीयता के संस्कार दें नौनिहालों को

किसी भी राष्ट्र के सर्वतोन्मुखी विकास के लिये तथा आजादी की शमा को रोशन रखने के लिये यह अत्यंत आवश्यक है कि बच्चों में देश-प्रेम की भावना विकसित की जाए| आज के बच्चे ही कल देश के भावी कर्णधार होंगे | घर ही बच्चों की प्राथमिक शाला है | अतः माता-पिता का यह परम कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों में देश-प्रेम की भावना पैदा करें, जिस तरह हम अपने माता-पिता, भाई-बहन तथा परिवारीजनों से प्रेम करते हैं, उसी प्रकार देश के प्रति अनुराग भी स्वाभाविक भावना है, सिर्फ़ जरूरत है, उसे विकसित करने की |
जब हम किसी से प्रेम करते हैं तो उसके अहित की बात हम स्वप्न में भी नहीं सोच सकते | यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि देश के प्रति प्रेम ही उन्हें इसका अहित करने से रोकेगा | फिर न आतंकवाद होगा, न उग्रवाद | भारत माता के प्रति श्रद्धा का भाव देश-वासियों में एक होने एवं सब भेदों को भूलकर एक मातृभूमि की सन्तान होने का प्रेम जगाता है |
रीति-रिवाज, धर्म, उपासना, भाषा-वेशभूषा के भेदों के विद्यमान होने पर भी राष्ट्र के सम्मान की भावना पारंपरिक प्रेम व सद्भावों को विकसित करती है |
बच्चों के कोमल मन पर सर्वाधिक प्रभाव माता-पिता के आचरण का पड़ता है | भाषण देने की अपेक्षा हमारे व्यवहार से वे अधिक सीखते हैं | हमारे मन में यदि देश-परम की भावना है तो स्वभाविक रूप से वे हमारे बच्चों में भी पनपेगी | कितने घरों में आज हमारी गौरवशाली संस्कृति का गुणगान व अनुसरण होता है? कितने ऐसे घर हैं जहाँ ‘युग’ अथवा ‘स्वराज’ जैसे धारावाहिकदेखे जाते हैं ? बच्चों में देश के प्रति प्रेम व सम्मान विकसित करने के लिये कुछ सुझाव हैं-
१.       भूलकर भी बच्चों के सामने देश की बुराई न करें |
२.       रेडियो तथा दूरदर्शन पर देशभक्ति गीत व धारावाहिक सुनें व देखें तथ बचों को भी प्रेरणा दें |
३.       स्वतंत्रता-सेनानियों के चित्र घर में टाँगें तथा स्वतंत्रता का महत्व बतलाएँ |
४.       महापुरुषों की कहानियाँ उन्हें बताएँ | महापुरुषों की जीवनियाँ तथा उनसे सम्बन्धित साहित्य लाकर दें |
५.       राष्ट्रीय ध्वज, गान या गीत एवं दिवस का महत्व एवं सम्मान बताएँ |
६.       बच्चों को स्वदेशी चीजों को अपनाने की सलाह दें | विदेशों के सव्ज बाग़ न दिखाएँ क्योंकि “ लाख लुभाये महल पराये, अपना घर फिर अपना घर है|”


डॉ. वी. के. पाठक

साभार: ‘मानव कल्याण’ (अंक १, अप्रैल २०००) से पुनर्प्रकाशित      

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें